
निर्जला एकादशी 2025: सम्पूर्ण जानकारी, तिथि, पारण समय, महत्व और व्रत विधि
निर्जला एकादशी 2025 – शुक्रवार, 6 जून और शनिवार, 7 जून को वैष्णव निर्जला एकादशी
🛕 परिचय: निर्जला एकादशी का महत्व
निर्जला एकादशी को वर्ष की सबसे कठिन और पुण्यदायी एकादशी माना जाता है। इसका अर्थ है – “बिना जल के एकादशी व्रत”, यानी इस दिन व्रती न तो अन्न ग्रहण करता है और न ही जल। यह एकादशी भगवान विष्णु को समर्पित होती है और शास्त्रों के अनुसार इसका पालन करने से सभी 24 एकादशियों का फल एक साथ प्राप्त होता है।
यह एकादशी विशेष रूप से भीमसेनी एकादशी भी कहलाती है क्योंकि महाभारत काल में भीम ने सिर्फ यही एक एकादशी व्रत किया था। यह व्रत गंगा स्नान, दान, पूजा और आत्मशुद्धि के लिए अत्यंत शुभ मानी जाती है।
निर्जला एकादशी 2025 तिथि व समय
विवरण | दिनांक और समय |
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निर्जला एकादशी व्रत तिथि | शुक्रवार, 6 जून 2025 |
वैष्णव निर्जला एकादशी | शनिवार, 7 जून 2025 |
एकादशी तिथि प्रारंभ | 5 जून 2025 को रात्रि 26:15+ बजे (यानि 6 जून की सुबह 2:15 बजे) |
एकादशी तिथि समाप्त | 6 जून 2025 को रात्रि 28:47+ बजे (यानि 7 जून की सुबह 4:47 बजे) |
पारण समय (व्रत समाप्ति / व्रत तोड़ने का समय)
✅ निर्जला एकादशी पारण – सामान्य व्रती के लिए
- दिनांक: 7 जून 2025 (शनिवार)
- समय: दोपहर 13:32 बजे से 16:19 बजे तक
- हरि वासर समाप्ति समय: 7 जून को प्रातः 11:25 बजे
✅ वैष्णव निर्जला एकादशी पारण – वैष्णव व्रती के लिए
- दिनांक: 8 जून 2025 (रविवार)
- समय: प्रातः 05:14 से 07:17 तक
- द्वादशी समाप्ति समय: 8 जून को 07:17 बजे
निर्जला एकादशी व्रत की प्रमुख विशेषताएँ
- जल का त्याग: इस व्रत में व्रती जल तक नहीं पीते हैं। यह व्रत शारीरिक और मानसिक तप का प्रतीक है।
- गहन उपवास: इस दिन व्रती फल, अन्न, जल सभी का त्याग करता है और अगले दिन पारण करता है।
- विष्णु पूजा: भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा विशेष मंत्रों और तुलसी पत्र के साथ की जाती है।
- दान और पुण्य: निर्जला एकादशी पर अन्न, वस्त्र, जल, छाया और धन का दान अत्यधिक पुण्यदायी होता है।
पूजा विधि (व्रत करने की विधि)
- पूर्व संकल्प: व्रती एक दिन पूर्व दशमी को सात्विक आहार ग्रहण करे और एकादशी व्रत का संकल्प ले।
- स्नान: ब्रह्म मुहूर्त में पवित्र जल से स्नान करें, गंगा जल का प्रयोग शुभ होता है।
- पूजन: भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की प्रतिमा को गंगाजल से स्नान कराकर पीले पुष्प, तुलसी, धूप, दीप, नैवेद्य अर्पित करें।
- विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें या “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप करें।
- पूरे दिन व्रत: दिनभर जल, अन्न, फल का त्याग कर प्रभु का स्मरण करें।
- रात्रि जागरण: रात्रि को जागरण करें और भजन-कीर्तन करें।
- पारण: द्वादशी के दिन हरि वासर समाप्ति के बाद ही पारण करें।
आध्यात्मिक लाभ
- यह व्रत सभी पापों का नाश करता है।
- मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करता है।
- श्रद्धा से किया गया व्रत सभी 24 एकादशियों का पुण्य फल प्रदान करता है।
- मानसिक शांति, आत्मबल और भक्ति में वृद्धि होती है।
भीमसेनी एकादशी कथा (संक्षेप में)
पौराणिक कथा के अनुसार, भीम को भूख अधिक लगती थी, इसलिए वह एकादशी व्रत नहीं कर पाते थे। जब वे ऋषि व्यास के पास गए, तब उन्होंने सलाह दी कि वे वर्ष में सिर्फ एक दिन – निर्जला एकादशी – का कठोर व्रत करें और वही सभी एकादशियों के बराबर फल देगा। भीम ने इस व्रत को किया और भगवान विष्णु ने उन्हें दर्शन देकर आशीर्वाद दिया।
निर्जला एकादशी 2025 – आधुनिक परिप्रेक्ष्य में
आज के समय में जहां जीवन भाग-दौड़ से भरा है, ऐसे में इस व्रत का महत्व और बढ़ जाता है। यह न केवल आत्मसंयम और शरीर पर नियंत्रण की शिक्षा देता है बल्कि पर्यावरणीय संतुलन और जल संरक्षण का भी प्रतीक बन सकता है।
निष्कर्ष
निर्जला एकादशी 2025 एक पवित्र और आत्मशुद्धि का पर्व है जो व्रत, भक्ति, दान और संयम से भरपूर होता है। यह दिन भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने का श्रेष्ठ अवसर है। इस दिन पूरे श्रद्धा और नियमपूर्वक व्रत करने से समस्त पापों का नाश होता है और दिव्य लोक की प्राप्ति होती है।