
भगवान कूर्म अवतार एवं कूर्म जयन्ती 2025: सम्पूर्ण विवरण
कूर्म जयन्ती 2025 तिथि एवं मुहूर्त:
- तिथि: सोमवार, 12 मई 2025
- मुहूर्त: सायं 16:21 से 19:03
- अवधि: 2 घंटे 42 मिनट
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कूर्म अवतार: भगवान विष्णु का दूसरा अवतार
भगवान विष्णु, जिन्हें श्री हरि, नारायण, अच्युत, जनार्दन आदि नामों से जाना जाता है, जब भी संसार में संकट उत्पन्न होता है, तब वे किसी न किसी रूप में अवतार लेकर अधर्म का नाश करते हैं। इसी कड़ी में उनका दूसरा अवतार “कूर्म” या कच्छप अवतार है। “कूर्म” का अर्थ होता है कछुआ, और इस रूप में भगवान विष्णु ने सत्य युग में अवतार लिया था।
कूर्म अवतार की कथा: समुद्र मंथन और विष्णु की भूमिका
समुद्र मंथन का कारण
दैत्यगुरु शुक्राचार्य ने तपोबल से भगवान शिव को प्रसन्न कर संजीवनी विद्या प्राप्त की। इससे असुरों को युद्ध में बार-बार जीवनदान मिलने लगा और उन्होंने इन्द्र समेत सभी देवताओं को पराजित कर स्वर्ग पर अधिकार कर लिया।
देवताओं की सहायता हेतु विष्णु जी का उपाय
विनम्र देवताओं ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। श्रीहरि ने सलाह दी कि देवता और असुर मिलकर समुद्र मंथन करें जिससे अमृत प्राप्त हो। असुर भी मंथन के लिए तैयार हो गए।
मंथन की तैयारी
- मथानी: मंदराचल पर्वत
- रस्सी: वासुकि नाग
लेकिन जैसे ही मंदराचल पर्वत समुद्र में डाला गया, वह डूबने लगा। कोई स्थिर आधार न होने के कारण मंथन रुक गया।
कूर्म रूप में विष्णु अवतार
इस संकट में भगवान विष्णु ने कछुए का रूप धारण किया और समुद्र की सतह पर लेटकर मंदराचल पर्वत को अपनी पीठ पर धारण किया। इस प्रकार समुद्र मंथन सफल हुआ और चौदह रत्नों के साथ अमृत प्राप्त हुआ।
धर्मग्रंथों में कूर्म अवतार
- नरसिंह पुराण: दूसरा अवतार
- श्रीमद्भागवत: ग्यारहवाँ अवतार
- महाभारत, लिङ्ग पुराण, पद्म पुराण: विस्तृत वर्णन
- शतपथ ब्राह्मण: रूप व महिमा
कूर्म अवतार और दुर्वासा ऋषि की कथा
एक बार महर्षि दुर्वासा ने इन्द्र को पारिजात माला भेंट की, जिसे इन्द्र ने अपमानजनक ढंग से हाथी पर डाल दिया। ऋषि दुर्वासा ने श्राप दिया कि देवताओं का वैभव नष्ट हो जाएगा। परिणामस्वरूप देवी लक्ष्मी समुद्र में विलीन हो गईं। विष्णु जी ने समुद्र मंथन का सुझाव दिया जिससे लक्ष्मी जी पुनः प्रकट हुईं और देवताओं को वैभव मिला।
कूर्म अवतार का स्वरूप
- आकार: नीचे का भाग कछुए जैसा, ऊपर का भाग मानव
- भुजाएँ: चार भुजाओं में शंख, चक्र, गदा, पद्म
- वेशभूषा: स्वर्णाभूषणों से अलंकृत
- स्थान: विशाल जलराशि के मध्य स्थित
कूर्म अवतार के मंत्र
- सामान्य मंत्र:
ॐ कूर्माय नमः।
- विष्णु मंत्र:
ॐ आं ह्रीं कौं कूर्मासनाय नमः।
- गायत्री मंत्र:
ॐ कच्छपेसाय विद्महे महाबलाय धीमहि। तन्नो कूर्मः प्रचोदयात्॥
भगवान कूर्म के प्रमुख मंदिर
- कूर्मनाथस्वामी मंदिर, श्रीकूर्मम, आंध्र प्रदेश
- कूर्म नारायण मंदिर, विभीषण कुण्ड, अयोध्या
- श्री गोदाविहार मंदिर, वृंदावन, उत्तर प्रदेश
कूर्म जयन्ती का महत्व
कूर्म जयन्ती वैशाख शुक्ल पूर्णिमा को मनाई जाती है। इस दिन विष्णु भक्त व्रत रखते हैं, पूजन करते हैं और कूर्म अवतार की महिमा का स्मरण करते हैं। इस व्रत से कष्टों से मुक्ति, धन-वैभव, और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है।
📌 निष्कर्ष
कूर्म अवतार न केवल एक दैवी चमत्कार है बल्कि यह जीवन में धैर्य, सेवा, और संतुलन का प्रतीक भी है। यह अवतार हमें सिखाता है कि संकट चाहे कितना भी गहरा क्यों न हो, धैर्यपूर्वक उसका समाधान संभव है। कूर्म जयन्ती का पर्व इसी धैर्य और शक्ति का उत्सव है।